जीवधारियों का वर्गीकरण Classification of organisms




जीवधारियों का वर्गीकरण:
  • वर्गीकरण का अर्थ जीवधारियों को विभिन्‍न समूहों में बाँटना है।
  • 18 वीं शताब्‍दी में लीनियस ने अपनी पुस्‍तक “सिस्‍टम अ नेचर” में जीवधारियों को दो जगत में बांटा – पादप जगत और जन्‍तु जगत।
  • आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली का आधार लीनियस द्वारा शुरु की गई वर्गीकरण प्रणाली है। इसलिये लीनियस को ‘वर्गीकरण का पिता’ कहते हैं।
  • जीवाणुओं, विषाणुओं, कवकों और यूग्‍लीना जैसे जन्‍तुओं की विवादित स्थिति के कारण, वर्गीकरण प्रणाली पर पुर्नविचार किये जाने की आवश्‍यकता है।
  • कैरोलस लीनियस द्वारा द्विजगत वर्गीकरण प्रणाली दी गई थी, जिसमें जीवों को पादप और जन्‍तुओं में वर्गीकृत किया है।
  • अर्नस्‍ट हेकल ने जीवों को तीन जगत में वर्गीकृत किया था; जैसे पादप, प्रोटिस्‍टा और जन्‍तु आदि।
  • कोपलैण्‍ड ने चार जगत वर्गीकरण प्रणाली प्रतिपादित की - मोनेरा, प्रोटिस्‍टा, पादप और जन्‍तु आदि।
  • आर. एच. विह्टकर ने जीवधारियों के वर्गीकरण को पाँच जगत में बाँटा।
  • सी वूस, ओ. कैण्‍डलर और एम. सी. व्‍हील्‍स ने जीवों की आधुनिक छह: जगत प्रणाली में वर्गीकृत किया है।

पाँच जगत वर्गीकरण:
  • आर. एच. विह्टकर ने वर्ष 1969 में जीवों की पाँच जगत वर्गीकरण प्रणाली प्रस्‍तावित की।
  • जीवों को पाँच जगत में बाँटने का आधार उनकी कोशिका संरचना की जटिलता, शारिरिक बनावट की जटिलता, पोषण प्रकार, जीवनशैली और वंशावली संबंध है।
  • वर्गीकरण निम्‍न प्रकार है:
  • मोनेरा: इसमें सभी प्रोकैरियोटिक जीव जैसे जीवाणु, सायनोबै‍क्‍टीरिया और आर्कीबैक्‍टीरिया, मायकोप्‍लाजमा, एक्टिनोमिसीट और रिकेटीसिया आदि हैं। तंतुमय जीवाणु भी इसमें शामिल किये जाते हैं। इस जगत के सभी जीव सूक्ष्‍म होते हैं।
  • प्रोटिस्‍टा: इस जगत में मुख्‍यत: जलीय वास में रहने वाले एककोशिकीय जीव शामिल किये जाते हैं। पोषण माध्‍यम के आधार पर ये स्‍वपोषी, परपोषी और सैप्रोफिटिक प्रकृति के होते हैं। डायटम फ्लैगलेट्स और प्रोटोजोआ इस जगत के अंतर्गत आते हैं। यूग्‍लीना में स्‍वपोषित और परपोषित दोनों माध्‍यमों से पोषण पाया जाता है। इसलिये इसको पादप और जन्‍तु के मध्‍य रखा गया है।
  • कवक: कवक वे विशेष जीव हैं जिनमें कोशिका भि‍त्ती काइटिन की बनी होती है और पोषण परपोषित प्रकृति का होता है। इनका शरीर तंतुओं का बना होता है जिन्‍हें हाइफे कहते हैं, जोकि एक जालनुमा संरचना बनाती है जिसे माइसीलियम कहते हैं। इनमें विखंडन के द्वारा जनन होता है। उदाहरण: मशरूम, म्‍यूकर, एलब्‍यूगो आदि।
  • पादप: पादप जगत में क्‍लोरिफिल युक्‍त यूकैरियोटिक जीव शामिल किये जाते हैं। लेकिन कुछ पौधे कीटभक्षी और परपोषी प्रकृति के होते हैं। पौधों का मुख्‍य गुण सेल्‍यूलोज की बनी कोशिका भित्ती का पाया जाना है।
  • जन्‍तु: जन्‍तु परपोषित एवं अंगों व ऊतकों वाले बहुकोशिकीय जीव होते हैं। लगभग प्रत्‍येक जन्‍तु को इस वर्ग में शामिल किया गया है।
जीव वैज्ञानिक नामकरण:
  • इसकी शुरुआत लीनियस ने अपनी पुस्‍तक “स्‍पेशीज पैन्‍टारम” से की थी।
  • प्रत्‍येक जीव के वैज्ञानिक नाम के दो भाग होते हैं - वंश नाम और जाति नाम
  • वंश नाम विशेष अक्षर से शुरु होता है जबकि जाति नाम अंग्रेजी के छोटे अक्षर से शुरु होता है।
मनुष्‍यहोमो सेपियन्‍समेंढकराना टिग्रिना
बिल्‍लीफेलिस डोमेस्टिकाकुत्‍ताकैनिस फैमलियरिस
गायबॉस इण्डिकसमक्‍खीमस्‍का डोमेस्टिका
आममैग्‍नीफेरा इण्डिकाचावलओरिजा सेटिवा
गेंहूट्रिटिकम एसेटिवममटरपिस्‍कम सैटिवम
चनासिसर अरीटिनमसरसो ब्रैसिका कैम्‍पसट्रिस

पादप विज्ञान
  • विभिन्‍न प्रकार के पेड़-पौधों का अध्‍ययन पादप विज्ञान कहलाता है।
  • थियोफ्रेस्‍टस को पादप विज्ञान का जनक माना जाता है।
एक्‍लर ने पादपों का निम्‍नलिखित वर्गीकरण किया:-
पादप जगत को मुख्‍यत: दो भागों में बांटा गया है जिसे बाद में विभिन्‍न भागों में बांटा गया है
  • अपुष्‍पोदभिद वर्ग
  • पुष्‍पोदभिद वर्ग
A. अपुष्‍पोदभिद वर्ग
इस वर्ग के पौधों में पुष्‍प और बीज का अभाव होता है। इन्‍हें पुन: निम्‍न समूहों में बांटा गया है:
  1. थैलोफाइटा:
    • यह वनस्‍पति जगत का सबसे बड़ा समूह है।
    • इस समूह के पौधों का शरीर सूकाय सदृश्‍य होता है अर्थात् जड़, तना या पत्‍ती का अभाव होता है, ये थैलोफाइटा कहलाते हैं।
    • इनमें संवहन ऊतक का अभाव होता है।
शैवाल
  • प्राय: जलीय होते हैं।
  • ये स्‍वपोषी, पर्णहरित युक्‍त सूकाय पौधे हैं।
  • इनमें जनन क्रिया वनस्‍पतिक एवं यौन माध्‍यम से होती है।
  • शैवालों का काफी मात्रा मे उगने को शैवाल आधिक्‍य कहते हैं और जब यह आधिक्‍य लाल शैवाल के कारण हो तो उसे लाल ज्‍वार कहते हैं।
  • लाल शैवाल को रेडोफेसी कहते हैं।
  • हरे शैवाल को क्‍लोरोफेसी कहते हैं।
  • भूरे शैवाल को फैओफेसी कहते हैं।
उपयोगी शैवाल:
  • भोजन के रूप में: पोरिफेरा, सारगासन, लेमनेरिया, नॉस्‍टॉक इत्‍यादि।
  • आयो‍डीन बनाने में: लेमिनेरिया और मैक्रोसाइटिस इत्‍यादि।
  • जैव-ऊवर्रक बनाने में: नॉस्‍टॉक, एनाबिना, केल्‍प इत्‍यादि।
  • प्रतिजैविक रूप में: कालरा के उपचार में क्‍लोरेलिन प्रतिजैविक बनाने में
  • अंतरिक्ष यात्रियों के लिये ऑक्‍सीजन निर्माण में: क्‍लोरेला और साइनक्‍कोकस
कवक:
  • कवकों के अध्‍ययन को कवक विज्ञान (माइकोलॉजी) कहते हैं।
  • कवकों में पर्णहरित का अभाव होता है।
  • कवकों में संग्रहित भोजन ग्‍लाइकोजन के रूप में उपस्थित होता है।
  • कवकों की कोशिका भि‍त्‍ती काइटिन की बनी होती है।

  1. ब्रायोफाइटा:
    • ब्रायोफाइटा वह पादप वर्ग है जिसमें काई (मॉस) उपस्थित होती है।
    • इस भाग के पौधों में अपरिपक्‍व तनें व पत्तियाँ होती हैं, लेकिन जड़ों का अभाव होता है।
    • शुष्‍क एवं नमी वाले स्‍थानों पर पाये जाने के कारण इसे पादप जगत का उभयचर वर्ग भी कहा जाता है।
    • ब्रायोफाइटा में जाइलम और फ्लोएम ऊतकों का अभाव होता है।
    • स्‍फेगनम नाम की काई अपने वजन से 18 गुना अधिक जल अवशोषित करने की क्षमता रखती है। इसलिये माली लोग इसका प्रयोग पौधों को एक स्‍थान से दूसरे तक ले जाने में सूखने से बचाने के लिये करते हैं।
    • स्‍फेगनम काई का ईंधन के तौर पर भी प्रयोग होता है।
    • स्‍फेगनम काई का प्रतिजैविक के तौर पर भी उपयोग होता है।
  2. टेरिडोफाइटा:
    • टेरिडोफाइटा में फर्न शामिल किये गये हैं।
    • फर्न वे पौधें हैं जिनमें पत्‍ती, जड़ें व तना होता है, लेकिन उनमें अन्‍य पौधों के समान पुष्‍प नहीं उगते हैं।
    • फर्म में विशेष प्रकार का तना होता है जिसे राइजोम कहते हैं, जो कि भूमि या उसके नीचे सतह के साथ साथ वृद्धि करता है।
    • जनन स्‍पीरॉन्जिया के अंदर विकसित बीजाणुओं द्वारा होता है।
    • उदाहरण: फर्न, अजोला, टेरिडियम, लायकोपोडियम इत्‍यादि।
B. पुष्‍पोदभिद या पुष्‍पीय पौधे
इस समूह के पौधे पूर्ण विकसित होते हैं। इस समूह के सभी पौधों में फूल, फल और बीज होते हैं। इस समूह के पौधों को पुन: दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
  1. नग्‍नबीजी
    • नग्‍नबीजी वे पौधे हैं जिनमें बीजाण्‍ड आवरण रहित होता है।
    • इस समूह के पौधे काष्‍ठीय, बहुवर्धी और लम्‍बे होते हैं।
    • इनकी मूसला जड़ें पूर्ण विकसित होती हैं।
    • परागण की क्रिया वायु द्वारा होती है।
    • इसमें वनस्‍पति जगत का सबसे लम्‍बा पेड़ (रेडवुड ट्री सिकोया ऑफ कैलीफोर्निया) शामिल होता है।
    • सबसे छोटा पौधा जैमिया पिग्मिया है।
    • जीवित जीवाश्‍म साइकस, जिंगो बाइलोबा और मेटासिकोया है।
    • जिंगो बाइलोवा को मेडन हेयर ट्री भी कहते हैं।
    • साइकस के बीजाण्‍ड एवं नरयुग्‍मक पादप जगत में सबसे बड़े होते हैं।
    • पाइनस के परागकण इतनी अधिक संख्‍या में होते हैं कि पीले बादल (सल्‍फर शॉवर) बन जाते हैं।
  2. आवृतबीजी
    • आवृतबीजी पौधों की सबसे बड़ी विशेषता इनमें फूलों का पाया जाना है।
    • आवृतबीजी पौधों की दूसरी प्रमुख विशेषता फल है।
    • इस समूह में सूक्ष्‍मतम पादप वोल्फिया से लेकर बड़े पेड़ यूकेल्पिटस तक शामिल हैं।
    • बीजपत्रों की संख्‍या के आधार पर आवृतबीजीयों को पुन: द्विबीजपत्री व एकबीजपत्री में बांटा गया है।
    • द्विबीजपत्री में दो बीजपत्र और एकबीजपत्री में एकबीजपत्र पाया जाता है।

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