मानव उत्सर्जन तंत्र Human excretory system






उत्‍सर्जन तंत्र

उपापचय की प्रक्रिया के दौरान मानव शरीर से नाइट्रोजनी पदार्थों का निष्‍कासन ही उत्‍सर्जन कहलाता है। सामान्‍यत: उत्‍सर्जन से अर्थ नाइट्रोजनी उत्‍सर्जी पदार्थों जैसे यूरीया, अमोनिया, यूरिक एसिड आदि का शरीर से बाहर निकालना है।
मानव शरीर के प्रमुख उत्‍सर्जी अंग निम्‍न प्रकार हैं –
(i) वृक्‍क (किडनी) –

  • मानव एवं अन्‍य दूसरे स्‍तनधारियों का प्रमुख उत्‍सर्जी अंग एक जोड़ी वृक्‍क हैं। इसका भार 140 ग्राम है।
  • इसके दो भाग होते हैं। बाहरी भाग कोरटैक्‍स और भीतरी भाग को मेडूला कहलाता है।
  • प्रत्‍येक वृक्‍क लगभग 13,000,000 वृक्‍क नलिकाओं से मिलकर बना होता है, जो कि नेफ्रान कहलाती हैं।
  • नेफ्रान वृक्‍क की संरचनात्‍मक एवं कार्यात्‍मक इकाई है।
  • प्रत्‍येक नेफ्रॉन में एक कप नुमा संरचना होती है जिसे बोमैन सम्‍पुट कहते हैं।
  • बोमैन सम्‍पुट में पतली रूधिर कोशिकाओं का एक कोशिकागुच्छ पाया जाता है जो कि दो प्रकार की धमनियों से मिलकर बनता है।

(a) चौड़ी अभिवाही धमनी: जो रक्‍त को कोशिकागुच्‍छ तक पहुँचाती है।

(b) पतली अपवाही धमनी: इसके द्वारा रक्‍त कोशिका गुच्‍छ से वापस लाया जाता है।

  • ग्‍लोमेरुलस की कोशिकाओं से द्रव के छनकर बोमेन गुहा में पहुँचने की क्रिया को परानिस्‍पंदन कहते हैं।
  • वृक्‍कों का प्रमुख कार्य रक्‍त के प्‍लाज्‍मा को छानकर शुद्ध बनाना है, अर्थात इसमें से अनावश्‍यक और अनुपयोगी पदार्थों को जल की कुछ मात्रा के साथ मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकालना है।
  • वृक्‍क को रुधिर की आपूर्ति अन्‍य अंगों की तुलना में बहुत अधिक होती है।
  • वृक्‍क में प्रतिमिनट औसतन 125 मिली रक्‍त निस्‍पंदित होता है अर्थात 180 लीटर प्रतिदिन। इसमें से 1.45 लीटर प्रतिदिन मूत्र में बदल जाता है और शेष नेफ्रान कोशिकाओं एवं रक्‍त में अवशेाषित हो जाता है।
  • सामन्‍यत: मूत्र में 95% जल, 2% लवण, 2.7% यूरीया और 0.3% यूरीक अम्‍ल होता है।
  • मूत्र का हल्‍का पीला रंग उसमें उपस्थित यूरोक्रोम के कारण होता है। यूरोक्रोम हीमोग्‍लोबिन के विखण्‍डन से बनता है।
  • मूत्र प्रकृति में अम्‍लीय होती है। इसका pH मान 6 है।
  • वृक्‍क में बनने वाली पथरी कैल्शियम ऑक्‍जलेट की बनी होती है।
(ii) त्‍वचा: 

त्‍वचा में पायी जाने वाली तेलीय ग्रंथियाँ एवं स्‍वेद ग्रंथियाँ क्रमश: सीबम एवं पसीने का स्‍त्रवण करती हैं।

(iii) यकृत: 

यकृत कोशिकाएं आवश्‍यकता से अधिक अमीनों अम्‍लों व रुधिर की अमोनिया को यूरीया में परिवर्तित करके उत्‍सर्जन में मुख्‍य भूमिका निभाती हैं।

(iv) फेफड़ें: 

फेफड़ा दो प्रकार के गैसीय पदार्थों कार्बन-डाइ-ऑक्‍साइड और जलवाष्‍प का उत्‍सर्जन करते हैं। कुछ पदार्थों जैसे लहसुन, प्‍याज और कुछ मसाले जिनमें वाष्‍पशील घटक होते हैं, का उत्‍सर्जन फेफड़े द्वारा ही होता है।

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